Why is Classic cinema fading away? । BOLLYWOOD MOVIES । INDIAN CINEMA





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हमारा सौ साल से भी ज्यादा पुराना सिनेमा आज़ादी के पचहत्तर साल के सफ़र में मौजूदा दौर में तकनीकी तौर पर पहले से कहीं ज्यादा आकर्षक, भव्य और विराट हो गया है लेकिन दर्शकों का दिल छू लेने वाली जो बात पचास-साठ साल पहले बनी फिल्मों में होती थी, वह अब दुर्लभ हो गई है। हिंदी सिनेमा के इतिहास में तमाम ऐसी पुरानी फिल्में हैं जो कालजयी कहलाती हैं , जिन्हें लोग आज भी याद करते हैं, बार बार देखना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में इन्हें क्लासिक सिनेमा का दर्जा हासिल है। आज सिनेमाहॉल से निकलने के बाद फिल्मों क�� वैसा असर नहीं रहता। हम आज सारी सहूलियतों के बावजूद क्लासिक फिल्में क्यों नहीं बना पा रहे हैं? कहां गया क्लासिक सिनेमा? सिनेम�� संवाद इस बार इसी मुद्दे पर । बातचीत में शामिल हैं हिंदी फिल्मों के बहुत जानेमाने और बहुत अनुभवी पटकथा लेखक कमलेश पांडे, सिनेमा स्कॉलर , लेखक और टिप्पणीकार प्रोफ़ेसर जवरीमल पारख, फिल्म लेखक नीरेन भट्ट और फिल्म लेखक धनंजय कुमार। चर्चा का संचालन कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म समीक्षक अमिताभ श्रीवास्तव

More than hundred years old Hindi Cinema has acquired a top class technical finesse and grandeur but the soulful storytelling of the old classics made 60-70 years back is missing. Classic Cinema like classic literature is timeless, eternal. People still yearn for the Old films made during the Golden era. Today we rarely recall a movie after few days of watching it. Where has the classic cinema gone? Is the era of classic cinema over now?

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