पिछले कुछ समय से हमारे सिनेमा, खास तौर पर मसाला मुंबईया फिल्मों के बारे में काफी तीखी राजनीति देखने को मिली है। समाज में भी फिल्मों, कलाकारों और फिल्मकारों को लेकर उग्र आवाजें तेज़ हुई हैं। सिनेमा और राजनीति के मुद्दे पर फिल्म इंडस्ट्री भी बंटी हुई दिखती है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सिनेमा को किसी तरह की राजनीति से प्रेरित या प्रभावित होना चाहिए? क्या सिनेमा को राजनैतिक होना चाहिए?मनोरंजन की कोई राजनीति होती है क्या? क्या बिल्कुल अराजनैतिक सिनेमा संभव हो सकता है? इस बार सिनेमा संवाद इन्ही सवा��ों के इर्द-गिर्द। बातचीत में शामिल हैं हिंदी फिल्मों के बहुत प्रतिष्ठित और बेहद सफल पटकथा लेखक कमलेश पांडेय, फिल्म स्कॉलर प्रोफेसर जवरीमल पारख, वरिष्ठ फिल्म समीक्षक अजय ब्रम्हात्मज और फिल्म लेखक धनंजय कुमार। चर्चा का संचालन कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव।
For quite sometime our cinema, specially mainstream Hindi films have become a subject of volatile on ground politics. There are aggressive voices from the society favouring or opposing certain films, film makers and actors. This raises seceral questions related to politics of Cinema. Should Cinema be political? Is any apolitical Cinema possible? Cinema Samvad focuses on this issue in this episode. The panelists are veteran scrpit writer Kamlesh Pandey, film scholar and author Professor Jawarimal Parakh, senior film critic Ajay Bramhatmaj and film writer Dhananjay Kumar. The discussion is moderated by senior journalist Amitaabh Srivastava.
सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें गूगल प्ले स्टोर पर –
Support True Journalism
Join our Membership Scheme:
स्वतंत्र पत्रकारिता को मज़बूत कीजिए। ‘सत्य हिंदी सदस्यता योजना’ में शामिल हों:
इस कार्यक्रम पर अपनी राय [email protected] पर भेजें।
#bollywood #hindifilms #cinemasamwaad
Download Movie Should Cinema be political? । BOLLYWOOD FILMS । HINDI MOVIES