Do films promote superstition? । HINDI CINEMA । BOLLYWOOD MOVIES

Click to rate this post!
[Total: 0 Average: 0]

Download Movie

हमारी भारतीय फिल्मों का  समाज में फैशन, बोलचाल , लोकव्यवहार से लेकर आस्था, विश्वास और अंधविश्वास के प्रसार के मामले में सीधा और गहरा असर दिखता है। फिल्मों की दीवानगी की वजह से हमारा समाज फिल्मों में दिखाए तमाम पहलुओं को अपना लेता है जिनमें अंधविश्वास भी शामिल हैं। फिल्मों से जुड़े लोगों को समाज में अंधविश्वास ओर कुरीतियों को बढावा न देने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए लेकिन क्या फिल्म उद्योग अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से ले रहा है? सिनेमा संवाद में इस बार चर्चा इसी विषय पर। बातचीत में शामिल हैं हिंदी फिल्मों के बहुत अनुभवी और प्रतिष्ठित पटकथा लेखक कमलेश पांडेय, वरिष्ठ फिल्म विश्लेषक प्रोफेसर जवरीमल पारख, वरिष्ठ फिल्म समीक्षक अजय ब्रम्हात्मज और फिल्म लेखक धनंजय कुमार। चर्चा का संचालन कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव। 

Cinema in India is influential in opinion making on various matters related to fashion, lifestyle, faith and superstition. People follow the patterns shown in films. Is the film industry really serious about its responsibility towards society? Do our films promote superstition? Cinema Samvad to focus on this issue in this episode. The panelists are veteran script writer Kamlesh Pandey, film scholar Professor Jawarimal Parakh, Senior film critic Ajay Bramhatmaj and film writer Dhananjay Kumar. The discussion is moderated by senior journalist Amitaabh Srivastava.

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें गूगल प्ले स्टोर पर –

Support True Journalism
Join our Membership Scheme:

स्वतंत्र पत्रकारिता को मज़बूत कीजिए। ‘सत्य हि��दी सदस्यता योजना’ में शामिल हों:

इस कार्यक्रम पर अपनी राय [email protected] पर भेजें।

#bollywood #hindifilms #cinemasamwaad

Download Movie Do films promote superstition? । HINDI CINEMA । BOLLYWOOD MOVIES